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उत्तर क्यों रहा निरुत्तर

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इस दशक में जितनी उथल-पुथल टेक्नॉलजी, पर्यावरण और बाजार से जुड़े बदलावों के चलते संभावित है, उतना ही बारूद इसमें जनसंख्या के रुझान भी भर सकते हैं। चीन हैरान है कि ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ 2015 में खत्म कर दिए जाने के बावजूद बच्चे पैदा होने की रफ्तार उसके यहां साल दर साल कम ही होती जा रही है।

बीते साल में वहां 1 करोड़ 46 लाख बच्चे पैदा हुए जो पिछले 70 वर्षों में सबसे कम संख्या है। सिर्फ 1961 को छोड़कर, जब तीन साल से जारी अकाल के कारण देश की प्रजनन दर बहुत ही नीचे चली गई थी। इस मामले में भारत ने अपनी उत्साहजनक पहलकदमी बरकरार रखी है और इस दशक में हमारी आबादी निश्चित रूप से चीन को पीछे छोड़ देने वाली है।

अलबत्ता देश के भीतर इसके कुछ अलग ही मायने निकलने वाले हैं जिस पर कहीं कोई बात ही नहीं हो रही है। सन 2000 में यह सवाल जोर-शोर से उठा था कि उत्तर भारत में लोकसभा सीटें दक्षिण की तुलना में औसतन डेढ़ गुनी आबादी पर बनी हुई हैं। मसलन, उधर आठ लाख की आबादी पर तो इधर 12 लाख पर।

अभी यह अनुपात दोगुने को पार कर रहा होगा लेकिन संभावना यही है कि जैसे 2001 में हर राज्य की लोकसभा सीटें अगले 25 साल तक स्थिर रखने का फैसला लिया गया, अशांति टालने के लिए वैसा ही कुछ 2026 में भी किया जाएगा। फिर भी इस क्रम में उत्तर भारत की ग्रामीण गरीबी और अशिक्षा जिस रफ्तार से बढ़ती जा रही है, उसका जल्दी कुछ करना होगा वरना कई नए तनाव भी देश को अपनी मुट्ठी में जकड़ लेंगे।


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